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युद्ध - भाग 2

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :280
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2901
आईएसबीएन :81-8143-197-9

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रामकथा पर आधारित श्रेष्ठ उपन्यास....

ग्यारह

 

रावण का रथ चलता जा रहा था।

तो राम सागर पार कर ही आया...रावण सोच रहा था...विभीषण उस पार गया, राम को लिवा लाने।..और रावण आज समझ पा रहा था कि उसके मन में सीता के प्रति कामासक्ति जगाने के पीछे शूर्पणखा का क्या उद्देश्य था। सम्मान और प्रतिशोध की बातें तो बहाना मात्र थीं। वह यही चाहती थी कि सीता को खोजना हुआ राम लंका में आ जाए और शूर्पणखा के चंगुल में फंस जाए...शूर्पणखा लंका में होती तो सचमुच जयमाला लेकर राम का स्वागत करती। ओह! रावण के ये छोटे भाई-बहन! कैसा-कैसा सुख-आराम, यश-मान नहीं दिया रावण ने उन्हें! और आज वे स्वतन्त्र हो गए हैं। स्वयं को रावण से अधिक बुद्धिमान मानते हैं। अपने हित और स्वार्थ के पीछे बड़े भाई का इस प्रकार विरोध कर रहे हैं...यह विरोध सामान्य नहीं है। अब भाई-बहन का कोई सम्बन्ध नहीं। शूर्पणखा का लंका में प्रवेश पूर्णतः निषिद्ध करना होगा; और विभीषण का तो अपने हाथों वध करना होगा...

पर वे दोनों वस्तुतः रावण से चतुर निकले। उन्होंने राम की क्षमता को ठीक आंका है। वे जानते थे कि राम सैन्य-संगठन कर सकता है। सागर पार कर सकता है...। और राम सचमुच आ गया। रावण ने कभी नहीं सोचा था कि यह संभव होगा...उसके मंत्री और सेनापति भी यही कहते रहे। मूर्ख...किसी ने रावण को सूचना नहीं दी-बहुरक्षित सागरों ने भी नहीं। गुप्तचरों ने भी नहीं। सैनिक चौकियों ने भी नहीं। तटरक्षकों ने भी नहीं...।

राम ने सागर पार कर लिया...राम ने क्या पार किया, विभीषण ने सुझाया होगा-कुलकलंक ने। वह लंका के सारे भेद जानता है। अब एक-एक कर राम को बताता रहेगा। सबसे पहले उसी का वध करना होगा...विभीषण की पत्नी और पुत्री...विभीषण के लिए यही दंड उचित होगा। उसकी पत्नी और पुत्री का वध। सरमा और कला का वध...।

रावण का चिंतन रुक गया...। एक परिजन विद्युज्जिह का वध कर रावण आज तक उसकी क्षतिपूर्ति ही कर रहा है। विभीषण का अपमान किया तो वह राम को सागर पार ले आया...। अब यदि सरमा और कला का वध किया तो...लंका में विभीषण के अनेक अनुयायी हैं...अन्तर्विद्रोह हो सकता है। फिर कुंभकर्ण। वह इस बात को तनिक भी पसन्द नहीं करेगा। कहीं वह रुष्ट न हो जाए। रावण के लिए वह महत्त्वपूर्ण है। भाइयों में से एक वही तो उसका समर्थक रह गया है...। रावण उसे अप्रसन्न नहीं कर सकता...सरमा और कला का वध उपयुक्त समय पर होना चाहिए। अभी तो वे अवरोध में ही रहें...

ये सब लोग रावण से सीता को छीनना चाहते हैं। कितना सरल है कहना...सीता को लौटा दो...। सागरपार कर वन में षड्यन्त्र कर अकेली सीता को रावण क्या इसलिए हर कर लाया था कि कोई कहे और वह सीता को लौटा दे...

'नहीं! रावण सीता को क्यों लौटाएगा।" उनके मन में प्रतिरावण पुनः हंस रहा था, "वह तो अपने सारे वंश का नाश करवाएगा। अपने प्राण देगा...।"

'कौन जन्मा है रावण के प्राण लेने वाला और उसके वंश का नाश करने वाला?" रावण ने प्रतिरावण को डांटा, "हां! यह ठीक है कि रावण अपने प्राण दे देगा, किंतु सीता जैसी सुन्दरी को लौटाएगा नहीं। पर कौन लेगा रावण के प्राण? रावण एक-एक कर इन सबके प्राण ले लेगा-राम, लक्ष्मण, सुग्रीव, हनुमान...और विभीषण के भी। किंतु सबसे पहले वह सीता को प्राप्त करेगा..."

रावण और प्रतिरावण दोनों ही चुप हो गए। रावण कुछ सोचता रहा और सहसा ही किसी निश्चय पर पहुंच कर बोला, "सारथे। रथ को अशोक वाटिका की ओर मोड़ लो।"

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. तेरह
  13. चौदह
  14. पन्ह्रह
  15. सोलह
  16. सत्रह
  17. अठारह
  18. उन्नीस
  19. बीस
  20. इक्कीस
  21. बाईस
  22. तेईस
  23. चौबीस

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